नहीं दिखते कोरोना के लक्षण, अब सामुदायिक संक्रमण का खतरा

रोग प्रतिरोधक क्षमता सेहत के लिए वरदान है। हालांकि कोरोना को लेकर उभर रही दूसरी तस्वीर से हालात चिंताजनक हैं। अच्छी प्रतिरोधक क्षमता वालों में बीमारी के लक्षण प्रकट नहीं होते और इसकी आड़ में कोरोना वायरस सामुदायिक संक्रमण की तरह बढ़ रहा है। मेरठ के लखीपुरा में रैंडम सैंपलिंग की जांच रिपोर्ट से भी यह बात पुष्ट हुई है। उधर, चिकित्सकों का कहना है कि इन हालातों में सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता भी बनेगी।



पूल टेस्टिंग ने बढ़ाई धड़कन


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय के प्रतिनिधि डा. अतुल राज ने मंगलवार को मेरठ में मरीजों की स्थिति की समीक्षा की। पता चला कि यहां भर्ती 81 में से 70 मरीजों में गंभीर लक्षण नहीं है। अभी तक सिर्फ ऐसे मरीजों की जांच हुई है, जो किसी संक्रमित मरीज की कड़ी से जुड़े थे। किंतु पूल सैंपलिंग में लखीपुरा के बाहरी क्षेत्र से पांच पाजिटिव मिलने से सामुदायिक संक्रमण का खतरा उत्पन्न हो रहा है।


बुजुगरे की आफत


ज्यादातर मरीजों में खांसी, बुखार, गले में खराश, थकान या पेट में दर्द जैसे लक्षण नहीं है। वो आसपास क बुजुर्गो, बच्चों, गर्भवती महिलाओं, शुगर, हाइपरटेंशन, कैंसर एवं किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों में वायरस संक्रमित कर सकते हैं। अभी तक कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों की ही जान गई है।


वायरल लोड पर निर्भर है संक्रमण


मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजिस्ट डा. अमित गर्ग के मुताबिक शरीर में कोरोना वायरस का लोड जितना होगा, संक्रमण उतना ही ज्यादा होगा। गंभीर रूप से बीमार मरीज के पास ज्यादा देर तक रहने वालों में वायरल लोड ज्यादा होगा, जबकि महज संपर्क में आने या संक्रमित हो जाने पर सामान्य लक्षण ही उभरेंगे। भारत में 20 से 50 साल की उम्र वालों में वायरल लोड कम मिलने से कोई लक्षण नहीं उभरता या फिर सामान्य फ्लू की तरह प्रकट होता है।


इतने फीसद मरीजों में नहीं मिले लक्षण


प्रदेश बिना            लक्षण वाले मरीजों का प्रतिशत


उत्तर प्रदेश                     75


पंजाब                             75


महाराष्ट्र                          65


कर्नाटक                           50


हर व्यक्ति की जांच संभव नहीं है। लक्षण उभरने पर ही जांच हो रही है। एसिम्टोमेटिक मरीजों की वजह से खतरा बढ़ा है। हाट स्पॉट पर सख्ती, संक्रमित मरीजों के इलाज एवं संपर्क में रहने वालों को क्वारंटाइन करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।


डा. राजकुमार, सीएमओ


80 प्रतिशत मरीजों में कोई लक्षण न मिलने से ये साइलेंट कैरियर के रूप में संक्रमण फैलाएंगे। इन्हें बड़ी उम्र के लोगों के बीच न जाने दें। फिलहाल भारत में सामुदायिक संक्रमण बचाने की चुनौती है। युवाओं को मूवमेंट का अवसर धीरे-धीरे खोलना चाहिए। सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता बनने में फिलहाल वक्त लगेगा।


डा. तनुराज सिरोही, वरिष्ठ फिजिशियन


लॉकडाउन, क्वारंटाइन और हाट स्पॉट सील करने से ही वायरस खत्म नहीं होगा। बुजुर्गो को घर में आइसोलेट रखें। जब 70 प्रतिशत लोग इस वायरस के संपर्क में जाएंगे तो सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता बन जाएगी। यही वैक्सीन जैसा काम करेगी। हमें इस वायरस के साथ जीना सीखना होगा।